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छोटे छोटे दुःख

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2005
पृष्ठ :255
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2906
आईएसबीएन :81-8143-280-0

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जिंदगी की पर्त-पर्त में बिछी हुई उन दुःखों की दास्तान ही बटोर लाई हैं-लेखिका तसलीमा नसरीन ....

कश्मीर अगर क्यूबा है, तो क्रुश्चेव कौन है?


अमेरिका ने संत्रास के खिलाफ जंग शुरू कर दी है। गुरु जो सिखाता है, शिष्य वही सीखता है। इज़राइल ने भी इसी किस्म की घोषणा की है और युद्ध में उतर पड़ा है। अब, कोई भी संत्रास के खिलाफ युद्ध की पुकार दे सकता है! क्षुद्र वंगलादेश ने भी क्षुद्र-क्षुद्र संत्रांसियों के खिलाफ, क्षुद्र मूल्य पर क्षुद्र-सी घोषणा की है। युद्ध संक्रामक होता है। अब पाकिस्तान और भारत भी युद्ध की धमकी देने लगे हैं। धमकियाँ अगर युद्ध की तरफ रुख करें, तो अमेरिका और इज़राइल जो कर रहा है, यहाँ यह घटना और भी भयंकर होगी। दुनिया के सबसे कमज़ोर दो शक्तियों पर, विपुल शक्तिधर अमेरिका ने चोट की है और अमेरिका की मदद से इज़राइल ने भी यही हरकत की है। सर्वाधुनिक मारणास्त्रों के जरिए बड़ी आसानी से उसने दुश्मनों का अगाड़ी-पिछाड़ी तल्ला चूर-चूर कर दिया है। लेकिन भारत, पाकिस्तान किसी से भी कम नहीं है। जो कुछ अमेरिका के पास है, वह सब इन दोनों देशों के पास नहीं है, यह सच है, लेकिन जो कुछ है, वही लाखों-लाखों इंसानों की हत्या के लिए काफी है! दोनों देशों के हाथ में परमाणविक बम है। और क्या चाहिए? धमकी देने लायक दम-खम, दोनों ही देशों के पास है। यहाँ किसी को भी डर के मारे गुफा के अंदर शरण नहीं लेना होगी। या सिर झुकाकर 'तुमने जो हुक्म किया है, मैं उसका अक्षर-अक्षर पालन करूँगा-' यह भी नहीं कहना होगा। अमेरिका चीन के बीच जो समझौता हुआ था, उसे तोड़कर, मारणास्त्र निर्माण में चीन ने पाकिस्तान की मदद की है। चीन ने कहा था-'जिस भी देश में परमाणविक बम नहीं हैं, उस देश पर चीन किसी शर्त पर भी बम प्रयोग नहीं करेगा या अन्य किसी भी देश को परमाणविक बम तैयार करने में मदद नहीं करेगा। लेकिन उसने मदद की! अमेरिका की तरफ से भारत में जो परमाणविक रिसर्च का काम हो रहा था, उसका फायदा उठाते हुए, भारत ने भी बम तैयार कर लिया। दोनों पड़ोसी देशों के पास, अब विध्वंसी मारणास्त्र मौजूद है। कौन, किसको तरह देकर बात करे?

भारत की नाराज़गी की वजह है। भारत के संसद पर पाकिस्तानी दहशतगर्द हमलावर हों और भारत चुपचाप बैठा रहे, यह नहीं हो सकता। बम का दंभ भारत क्यों न दिखाए? दुनिया का सबसे बड़ा गणतंत्र, उसे तो सीना फुलाकर ही बात करनी चाहिए। विदेशी दहशतगर्दी के शिकंजे से अपने देश की हिफाज़त करनी ही चाहिए। वे दहशतगर्द, पाकिस्तान के ही थे, पाकिस्तान ने भारत से इसका सबूत दिखाने को कहा है। लेकिन भारत वह सबूत क्यों दिखाए ? अभी उसी दिन तालिबान सरकार ने वह सबूत दिखाने की माँग की कि ओसामा बिन लादेन ही वर्ल्ड सेंटर पर हमले के लिए जिम्मेदार है। लेकिन अमेरिका वह सबूत दिखाने को राजी नहीं हुआ। युद्धों के उस्ताद से भारत ने भी युद्ध के नियम सीख लिए हैं। चाहे जो भी करो, शत्रुपक्ष अगर प्रमाण देखना चाहे, तो हरगिज अहमियत मत देना, अपने फैसले पर अटल रहना। अब खेल परवेज मुशर्रफ़ के हाथ में है और वे खेल भी रहे हैं। जो खेल जियाउल हक ने अफ़ग़ान सोवियत युद्ध के समय, जिमी कार्टर के साथ खेला था, इस बार परवेज मुशर्रफ़ खेल रहे हैं, बुश के साथ-तुम मेरी जगह से अपनी फौज उठा लो, क्योंकि इस वक्त मुझे भारत के खिलाफ जंग लड़ना है! पाकिस्तान के लिए, इस वक्त, भारत से युद्ध करना, अमेरिका की सेवा करने से ज़्यादा ज़रूरी है। यह बात परवेज मुशर्रफ़ ने साफ-साफ कह दी। ऐसी स्थिति में बश साहब अगर पाकिस्तान का पक्ष न लें, तो पाकिस्तान में अपना अड्डा गाड़ने की योजना, कहीं धूल में न मिल जाए। बुश जो संत्रास-विरोधी आंदोलन कर रहे हैं। इस तरह का आंदोलन भारत को भी करना युक्तिसंगत है। यह बात बुश अच्छी तरह जानते हैं। अब वे न तो इस तरफ जा सकते हैं, न उस तरफ! हालाँकि विश्व की महाशक्ति को नेस्तनाबूद होना शोभा तो नहीं देता, मगर अब क्या उपाय?

ऐसे में अचानक पिछले दिनों की याद हो आती है। दूसरे महायुद्ध के बाद, सर्द-युद्ध शुरू हो गया। यह सर्द-युद्ध था मित्र-शक्ति, सोवियत यूनियन और युक्तराष्ट्र की दो पराशक्तियों के बीच। समूची पृथ्वी आज ध्वंस हो जाए या कल! कोई इस दल में, कोई उस दल में। हिंसा, घृणा बढ़ते-बढ़ते ऐसी स्थिति में जा पहुँची कि एक दूसरे पर परमाणविक बम बरसाने के अलावा कोई और कुछ भी नहीं सोच सकता था। सोवियत यूनियन से युद्धास्त्र क्यूबा में आने लगे। अब कोई क्या करेगा, कर ले! पहले तू मारेगा या मैं? दोनों ही मरने-मारने पर उतारू! लेकिन, अंत में, कोई किसी पर हमलावर नहीं हुआ! सवाल उठा, दुश्मन के बिल्कुल आँगन में खड़े होकर धमकी देने के बावजूद, सोवियत पीछे क्यों हट गया? युक्तराष्ट्र भी अफरातफरी में शांत क्यों पड़ गया?

इस प्रसंग में एक बार पीछे मुड़कर देखा जाए। इसलिए कि पिछली एक घटना के साथ, वर्तमान घटना की थोड़ी-बहुत समानता जो है! मुझे उम्मीद है कि उप-महादेश के दोनों दुश्मन देश अतीत से सबक ले सकते हैं। पीछे ही एक देश है, जिसका नाम है-क्यूबा! एक साल है-1962! सन् 1962 में क्यूबा में क्या हुआ था? क्यूबा का बे ऑफ पिग दख़ल करने के बाद, कैस्ट्रो सरकार को जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए, अमेरिका ने ऑपरेशन मंगुश की योजना बनाई। अमेरिका ने क्यूबा में क्यूबन द्वारा ही, कैस्ट्रो-विरोधी आंदोलन की जोरदार तैयारियां शुरू कर दीं। आंदोलन जब चरम स्थिति तक पहुंच जाएगा, तब अमेरिका मैदान में उतरेगा। उसके बाद, वह कैस्ट्रो सरकार को उखाड़कर, नई सरकार नियुक्त करेगा! ऐसी सरकार, जिसे अमेरिका अगर कहे तो उठ खड़ी होगी, बैठने को कहे, तो बैठेगी। कैस्ट्रो और उनके कम्यूनिस्ट साथियों की हत्या करने के लिए, ऑपरेशन मंगुश का ब्लू-प्रिंट भी तैयार हो गया-राजनीति, मनोवैज्ञानिक मिलिटरी सैबोटाज़ और इंटेलिजेंस ऑपरेशन के लिए, अमेरिका अक्तूबर के महीने तक ज़रूर उतर पड़ेगा। उसने तुर्की में जुपिटर मिसाइल फिट कर दिया। सोवियत यूनियन और अमेरिका के आपसी रिश्ते चरम कड़वाहट लिए थे। अप्रैल के महीने में, सोवियत नेता, निकिता क्रुश्चेव, जब छुट्टियाँ बिताने के लिए तुर्की गए, तो वहाँ उनके दिमाग को ख्याल सूझा। सोवियत भी तो क्यूबा में मिसाइल रख सकता है! इस तरह क्यूबा को अमेरिका के हमले से बचाया भी जाए। और अमेरिका की आँख में उँगली घुसेड़कर यह भी दिखा दिया जाए कि मेरे आँगन में तुम्हें ही बम सजाने का हक नहीं है, हमारा भी कोई हक होना ही चाहिए। अपने देश लौटकर, क्रुश्चेव ने यह प्रसंग छेड़ा, लेकिन प्रधानमंत्री अनासतास पिखोयान राजी नहीं हुए। खैर वे भले राजी नहीं हुए, मगर बाकी नेतागण राजी हो गए। उन लोगों ने कहा-'चलो, देखते हैं। कैस्ट्रो को ही यह प्रस्ताव दें, देखें वे राजी होते हैं या नहीं।' क्रश्चेव ने सोवियत सेना-प्रधान को यह देखने की जिम्मेदारी सौंपी कि क्यूबा में कितने अस्त्र भेजे जाएँगे। ख़बर आई कि मंझोले ताकतवाले क्षेपणास्त्र के साथ-साथ काफी सारी फौज तैनात करना भी संभव है। मॉस्को से एक प्रतिनिधि दल हवाना आ पहँचा। क्यूबा की मिट्टी पर सोवियत क्षेपणास्त्र बिठाने से मना करने की, कैस्ट्रो के लिए कोई वजह नहीं थी, जब वे देख रहे थे कि कैरीबियन अंचल में अमेरिकी फौज ने अड्डा जमा लिया है। उनका निशाना क्यूबा है!

कैस्ट्रो एकदम से दहाड़ पड़े।

उन्होंने कहा, 'ठीक है, जो लाना है। अभी ले आएँ! इसी वक्त! लेकिन पक्का वादा करने से पहले मैं ज़रा समझ लूँ।'

चे गुवेमारा, भाई राउल कैस्ट्रो और कुछेक अन्य साथी समझ गए। ये राजी हो गए। बाकी लोगों ने भी मंजूरी दे दी। कैस्ट्रो ने सोवियत प्रतिनिधि को भी इत्तला दे दी कि वे राजी हैं। इसका उद्देश्य सिर्फ अमेरिकी हमले को ही नाकामयाब बनाना नहीं है। बल्कि समाजतंत्र की भलाई के लिए भी दो समाजतांत्रिक राष्ट्रों का पारस्परिक सहयोग बढ़ाना भी अहम उद्देश्य है! क्यूबा विप्लव में कैस्ट्रो को सोवियत यूनियन की मदद मिल गई। इसके लिए वे कृतज्ञ भी थे। कैस्ट्रो ने जो कहा, प्रतिनिधि दल ने मास्को लौटकर, वे बातें क्रुश्चेव को बता दी। जुलाई महीने की शुरुआत में राउल कैस्ट्रो, क्यूबा के रक्षा मंत्री कुछेक अन्यान्य फौजी-नेताओं के साथ, क्रुश्चेव से भेंट करने के लिए मॉस्को आए। उन लोगों में बातचीत हुई! जुलाई के मध्य से ही जहाज भर-भरकर अस्त्र-शस्त्र चोरी-चोरी काले सागर और बाल्टिक सागर पार करके, क्यूबा में आने लगे। दो हफ्ते बाद राउल, मॉस्को से वापस लौट आए। उन्होंने जनगण में ऐलान कर दिया कि अब हमारे पास, अमेरिका से मुकाबला करने की ताकत है। उसके बाद, हफ्ता भर भी नहीं गुज़रा। जुलाई की सत्ताईस तारीख को ही, अमेरिका ने ऑपरेशन मंगुश का काम शुरू कर दिया, हालाँकि तय यही हुआ था कि वे लोग यह काम अक्तूबर में शुरू करेंगे। ग्यारह सी आइ ए गोरिल्लों का दल क्यूबा में घुस आया। एक-एक दल में दो सौ पचास सी आइ ए!

ऑपरेशन मंगश के ब्लू-प्रिंट तैयार करने वाले, एडवार्ड लैंड्सडेल ने कहा, 'क्यूबा पर अमेरिका का वक्त कम होता जा रहा है। जो भी करना है, जल्दी करो! फिदेल कैस्ट्रो ने कहा है कि पूँजीवादी अब हमारे लिए कोई ख़तरा, कोई धमकी नहीं रह गए।'

उधर अमेरिका में बैठे-बैठे केनेडी ने फरमाया कि वे अपने फैसले पर अटल हैं। कौन-कौन से बम आ रहे हैं, कैसे आ रहे हैं। सी आइ ए, क्यूबा से ये सारी खबरें अमेरिका को भेजता रहा। सी आइ ए के डाइरेक्टर, जॉन मैककोन, सरकार के उच्चस्तरीय लोगों के साथ ज़रूरी बैठक में सोच-विचार के लिए बैठे। उनका वक्तव्य था कि क्यूबा अब अमेरिका पर आक्रमण करने के लिए बिल्कुल तैयार है। रक्षा मंत्रालय, जॉन मैककोन से सहमत नहीं था। क्यूबा, हद से हद, हमला रोकने की तैयारी कर सकता है। लेकिन खुद हमला नहीं कर सकता। ऑपरेशन मंगुश चलाने के लिए केनेडी ने जो स्पेशल ग्रुप अॅगमेंटेड (एस जी ए) का गठन किया था, उसका प्रधान, मैक्सवेल टेलर ने केनेडी को बताया कि ऑपरेशन मंगुश, जिस तरह गुप्त तरीके से होना चाहिए था, अब वह संभव नहीं है। सिर्फ इतना ही नहीं, जो तय हुआ था, उससे बहुत ज्यादा आक्रमणात्मक होना होगा! सीधे-सीधे हमला करना होगा। अमेरिका के उच्च स्तरीय नेताओं की तो नींद हराम हो गई। खैर ऐसा तो होना ही था! अमेरिका की नाक तले ही दुश्मन का परमाणविक बम! केनेडी ने आदेश दिया कि जितनी जल्दी हो सके, ऑपरेशन मंगुश सफल किया जाए, वह भी गुप्त रूप से! वे कैस्ट्रा का पतन चाहते हैं, अभी तुरंत! अगस्त की छब्बीस तारीख को क्यूबा के उद्योग मंत्री चे ग्वेवारा और कैस्ट्रो के एक दोस्त, एमिलो ऑर्गनेस, क्रुश्चेव से भेंट करने के लिए मॉस्को पहुँचे। चे ने अनुरोध किया कि वे क्यूबा में सोवियत मिसाइल लाने की बात, जनता के सामने घोषित कर दें। क्रुश्चेव इसके लिए राजी नहीं हुए। इधर अमेरिका का विमान, आकाश से, क्यूबा में कहाँ, क्या है-इनकी सारी तस्वीरें लेता रहा। परमाणविक बम की अवस्थिति का पता लगाना ही, उनका मूल लक्ष्य था। जॉन केनेडी के भाई एटार्नी जेनरल, रॉबर्ट केनेडी, अमेरिका में सोवियत राजदूत से मिलने गए। दूत ने उन्हें जानकारी दी कि क्रुश्चेव का अमेरिका पर हमला करने की कोई योजना नहीं है। क्यूबा को जो अस्त्र-शस्त्र भेजे गए हैं, वह लोगों की रक्षा के लिए हमले के लिए नहीं। इधर अमेरिका तैयार था। केनेडी यह कहते फिरे कि हम लोग क्यूबा पर हमला नहीं करने वाले हैं, लेकिन क्यूबा अगर किसी किस्म का हमला करेगा, तो वे लोग भी नहीं छोड़ेंगे।

उधर क्यूबा की तरफ क्षेपणास्त्र ताबड़तोड़ आते जा रहे थे। सी आइ ए ने सूचना भेजी कि क्यूबा पर अमेरिका के भयंकर आक्रमण के मुकाबले को छोड़कर, इन क्षेपणास्त्रों के प्रयोग करने का, क्रुश्चेव का कोई इरादा नहीं है। अमेरिका के संसद में बिल पास हुआ कि कोई भी देश अगर क्यूबा को अस्त्र या कुछ और भेजेगा, तो अमेरिका उस देश से सभी तरह के व्यापारिक समझौते और आर्थिक मदद ख़ारिज कर दिया जाएगा। सितंबर में राष्ट्रसंघ के शीर्ष बैठक में सोवियत यूनियन के विदेश मंत्री, आन्प्रेइ ग्रोमाइको ने कहा, 'अमेरिका युद्ध के लिए उतावला हो उठा है। जिस भी शख़्स में ज़रा भी अक्ल है, वह समझ लेगा कि क्यूबा, अमेरिका या पश्चिमी यूरोप के लिए, कोई धमकी नहीं है! कभी हो भी नहीं सकता। लेकिन अमेरिका अगर क्यूबा पर किसी भी तरह का हमला करता है, तो हम क्यूबा को बचाएँगे।' क्यूबा में जब सोवियत यूनियन से आइ एल 28 आया, तो अमेरिका फिर बौखला गया। सारे युद्ध विमान तो परमाणविक बम वहन नहीं कर सकते। यह आइ एल 28 वहन कर सकता है। क्यूबा में चोरी-छिपे 42 आइ एल 28 आ पहुँचा। लेकिन यह ख़बर केनेडी के कानों तक भी पहुंच गई। अमेरिका की नौ-पोत अब इस पहरे पर तैनात हो गईं कि क्यूबा में सोवियत का कोई भी जहाज न पहुँच सके। अक्तूबर में अमेरिका ने क्यूबा पर विमान हमला, यहाँ तक कि जीवाणु अस्त्र बरसाने की योजना बनाई। क्यूबा में रखे हुए आइ एल 28 ध्वंस कर देने के अलावा, जितने सारे क्षेपणास्त्र मौजूद थे, अपने विमान-हमले में अमेरिका ने उन्हें भी चूर-चूर कर डालने का फैसला किया। सारे अस्त्र चूर-चूर कर देने के बाद, क्यूबा पर दखल ! फैसला पक्का हो गया। क्रुश्चेव आगे बढ़ आए। फैसला लेने से ही सब हो जाएगा? चलो, बात करते हैं! तुम्हारा मसला क्या है। यह बताओ? मैं अपनी समस्या भी बताता हूँ। चलो, समस्या का समाधान करते हैं। युद्ध के अलावा, अगर किसी और उपाय से समाधान संभव है, तो चलो, करते हैं! जॉन मैककोन ने सोवियत प्रधानमंत्री से भेंट की। क्यूबा में आए हुए क्षेपणास्त्र की सूची दिखाकर, उन्होंने कहा कि जिन सब हथियारों पर अमेरिका को एतराज है, वे सब हथियार क्यूबा से हटा दिए जाएँ, वर्ना मुसीबत हो सकती है। जॉन मैककोन की धमकी सुनकर क्रुश्चेप ने अतिशय शांत लहजे में जवाब दिया कि वे सभी हथियार क्यूबा से हटा लेंगे, लेकिन केनेडी को वादा करना होगा कि वे क्यूबा पर हमला नहीं करेंगे। सिर्फ इतना ही नहीं, लैटिन अमेरिका के किसी भी देश पर हमला करने की साजिश न रची जाए। क्रुश्चेव ने केनेडी को ख़त लिखा। केनेडी ने भी जवाव लिखा। नवंबर के शुरू में, दोनों पराशक्तियों में यही सब चलता रहा–'क्या बात है? तुम अपना क्षेपणास्त्र हटा क्यों नहीं रहे हो? क्यों? समझौते पर दस्तखत क्यों नहीं कर रहे हो?' क्रुश्चेव ने कहा, 'यह सब हटाने में, मझे दो-तीन महीनों का वक्त लग जाएगा। इधर, क्यूबा में आकर, वहाँ कौन-कौन से क्षेपणास्त्र हैं, उसकी जाँच करने के अमेरिका के प्रस्ताव को कैस्ट्रो ने ख़ारिज कर दिया। यह एकपक्षीय जाँच, उन्हें मंजूर नहीं था। क्यूबा भी देखना चाहेगा कि अमेरिका के भंडार में कौन-कौन से अस्त्र हैं। कैस्ट्रो ने यह भी चेतावनी दी कि क्यूबा के आकाश पर उन्हें अगर अमेरिकी विमान उड़ता हुआ नज़र आया, तो उसे बम मारकर ज़रूर उड़ा देंगे।

यह सुनकर केनेडी दुबारा भड़क गए। नवंबर की 16 तारीख को, सुबह सात वजे, उत्तर कैरोलाइना के उत्तरी तट पर अमेरिका का सबसे बड़ा उभचर, एम्फीबियस तैयार किया गया, जो पानी में भी चलता था और जमीन पर भी। क्यूबा पर आक्रमण की तैयारियां शुरू हो गईं। एक लाख फौज, चालीस हज़ार नौसेना, चौदह हज़ार पाँच सौ पैराट्रपर्स, पाँच सौ पचास युद्ध विमान, एक सौ अस्सी युद्धपोत का काफिला तैयार किया जाने लगा। तैयारियां पूरी करने में तीस दिन का वक्त लगेगा। उस वक्त क्रुश्चेव, केनेडी को ख़त पर खत भेजने लगे। क्रुश्चेव और केनेडी में पत्राचार का सिलसिला शुरू हो गया। केनेडी ने यूरोप के प्रधान वर्ग को लिख भेजा कि क्रुश्चेव आइ एल 28 अभी भी नहीं हटा रहे हैं, इसलिए अमेरिका ने क्यूबा पर आक्रमण के लिए तैयारियां शुरू कर दी हैं। लेकिन अब पहले की तरह कहीं भी दुराव-छिपाव नहीं था। उधर सी आइ ए क्यूबा में रहकर ही, जो करना था, कर रहा था। उसने क्यूबा का एक कारखाना उड़ा दिया। खैर, कोई बात नहीं! यह कोई ख़ास बात नहीं है! सामने विशाल आतंक! परमाणविक बम का आतंक ! आज नहीं तो कल बरसनेवाला है। उस वक्त क्रुश्चेव ने केनेडी को 14 पन्नों का एक ख़त लिखा। उन्होंने वादा किया कि वे आइ एल 28 हटा लेंगे। हटाने में महीना भर लगेगा। उन्होंने यह भी कहा, 'तमाम आइ एल 28 बारह साल पुराने हैं। अब उन्हें 'ऑफेन्सिव' नहीं कहा जा सकता। खैर फिर भी वे, सब हथियार वहाँ से हटा लेंगे।' पत्र के अंत में उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि अमेरिका किसी शर्त पर भी क्यूबा में दखल न करे। क्रुश्चेव के उस ख़त की वजह से अमेरिका ने क्यूबा पर हमले का फैसला रद्द कर दिया। क्रुश्चेव ने केनेडी को फिर एक ख़त लिखा। उन्होंने लिखा कि क्यूबा के राष्ट्र-गौरव पर अमेरिका का आघात न हो। अनुरोध पर अनुरोध! ख़त पर ख़त! रॉबर्ट केनेडी ने उन सब ख़तों के बारे में मंतव्य दिया-लॉन्ग ऐंड इमोशनल! सिर्फ आइ एल 28 ही क्यों, सोवियत यूनियन सभी क्षेपणास्त्र ही क्यूबा से हटा लेंगे, अनुरोध सिर्फ एक ही है-अमेरिका, क्यूबा को चैन से रहने दे! क्यूबा में जितने क्षेपणास्त्र मौजूद थे, सोवियत ने वे सारे अस्त्र हटा लिए। इसके बावजूद क्रुश्चेव ने कहा, 'अमेरिका अगर अब भी क्यूबा पर हमला करता है, तो हम उसकी रक्षा करेंगे।' 17 दिसम्बर को रेडियो और टेलीवजन को दिए गए अपने इंटरव्यू में केनेडी ने कहा, '17 अक्तूबर को क्यूबा पर आक्रमण न करके, हमने अच्छा ही किया। असल में क्यूबा में जो क्षेपणास्त्र मौजूद थे, वे जानलेवा नहीं थे।' सोवियत यूनियन और अमेरिका, विश्वास के नज़रिए से एक-दूसरे से इतने अलग हैं कि परमाणविक बम का भी इस्तेमाल हो सकता था। लेकिन अगर यह गलती कर बैठते, तो कैसा जघन्य कांड हो जाता! क्रश्चेव ने केनेडी को फिर एक खत लिखा-Time has come not to hut an end once and for all to nuclear tests. उन्होंने यह भी लिखा-With the elimination of the Cuban crisist we relieved mankind of the direct menace of combat use of lethal nuclear weapons that impended over the world. Can't we solve a far simpler question that of cessation of experimental exposions of nuclear weapons in the peaceful conditions?

शुरू-शुरू में अमेरिका पर आक्रमण करने का क्रुश्चेव का कोई इरादा नहीं . था। लेकिन क्यूबा पर आक्रमण करने का, अमेरिका का इरादा ज़रूर था। क्रुश्चेव का सिद्धांत था, शांति के पक्ष में शर्त वसूल करना। युद्ध नहीं, शांति के लिए कोशिश करना। उन्होंने यही कोशिश की। लेकिन वे अमेरिका के मन से समाजतांत्रिक देश के प्रति क्षोभ दूर नहीं कर पाए, यहाँ तक कि क्यूबा से भी नहीं! लेकिन क्यूबा में घटनेवाला भावी युद्ध, उन्होंने रोक लिया।

आजकल पाक-भारत युद्ध छिड़ने की तैयारी में है। मैं सोचती हूँ इस बार क्रुश्चेव कौन होगा? युद्ध रोकने का प्रयास कौन करेगा? शांति लाने की कोशिश कौन करेगा? वाजपेयी या मुशर्रफ? सन् 1962 में अमेरिका और सोवियत यूनियन जैसे जात-शत्रु, युद्ध से विरत हो सकते हैं, तो भारत-पाकिस्तान ऐसा क्यों नहीं कर सकेगा? उसे करना ही होगा। किसी न किसी को क्रुश्चेव की भूमिका निभाना ही होगी, वर्ना आम इंसान की मौत को रोकने का उपाय, किसी के पास नहीं होगा। क्रुश्चेव ने केनेडी को खत लिखते हुए, पन्ने पर पन्ने रंग डाले। अब तो बातों के आदान-प्रदान के लिए ख़त से ज़्यादा उन्नत इंतज़ाम है। उस इंतजाम का इस्तेमाल करके, कश्मीर-समस्या का निपटारा करके, युद्ध रोकना ही होगा। भारत और पाकिस्तान के बीच राजनीतिक विश्वास का कोई विरोध नहीं है, जिस विश्वास ने पृथ्वी को दो हिस्सों में बाँट दिया है। कश्मीर में पाकिस्तानी उग्रवादियों के दीर्घ वर्षों से हमलों और हाल ही में भारतीय संसद पर पाकिस्तानी दहशतगर्द गिरोह के हमले की वजह से एक जन अड़ गया है और दूसरा अहंकार से फूल उठा है। इसलिए सारे रिश्ते ज़हर जैसे कड़वे हो आए हैं। इसीलिए युद्ध की गुहार लगा रहे हैं? कैसा होगा वह युद्ध? परमाणविक बम में अगर किसी की एक बाँह अलग हो जाए? हिरोशिमा नागासाकी की बात, अगर कोई भूल जाए? अगर वाकई भूल गए, तो अशुभ होने के अलावा, और कुछ नहीं जुटेगा। एकमात्र मृत्यु, एकमात्र हाहाकार के अलावा, इस उपमहादेश में और कुछ नहीं बचेगा।

गाँधी जी ने कहा था, 'यू मस्ट हैव मोर फेथ इन आवर नॉन-वायलेंस दैन द टेररिस्ट हैज़ इन हिज़ वायलेंस।' क्रुश्चेव होने की क्षमता, अगर वाजपेयी या मुशर्रफ में न हो, तो इस वक्त वे दोनों कम से कम गाँधी को तो याद कर सकते हैं।



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    अनुक्रम

  1. आपकी क्या माँ-बहन नहीं हैं?
  2. मर्द का लीला-खेल
  3. सेवक की अपूर्व सेवा
  4. मुनीर, खूकू और अन्यान्य
  5. केबिन क्रू के बारे में
  6. तीन तलाक की गुत्थी और मुसलमान की मुट्ठी
  7. उत्तराधिकार-1
  8. उत्तराधिकार-2
  9. अधिकार-अनधिकार
  10. औरत को लेकर, फिर एक नया मज़ाक़
  11. मुझे पासपोर्ट वापस कब मिलेगा, माननीय गृहमंत्री?
  12. कितनी बार घूघू, तुम खा जाओगे धान?
  13. इंतज़ार
  14. यह कैसा बंधन?
  15. औरत तुम किसकी? अपनी या उसकी?
  16. बलात्कार की सजा उम्र-कैद
  17. जुलजुल बूढ़े, मगर नीयत साफ़ नहीं
  18. औरत के भाग्य-नियंताओं की धूर्तता
  19. कुछ व्यक्तिगत, काफी कुछ समष्टिगत
  20. आलस्य त्यागो! कर्मठ बनो! लक्ष्मण-रेखा तोड़ दो
  21. फतवाबाज़ों का गिरोह
  22. विप्लवी अज़ीजुल का नया विप्लव
  23. इधर-उधर की बात
  24. यह देश गुलाम आयम का देश है
  25. धर्म रहा, तो कट्टरवाद भी रहेगा
  26. औरत का धंधा और सांप्रदायिकता
  27. सतीत्व पर पहरा
  28. मानवता से बड़ा कोई धर्म नहीं
  29. अगर सीने में बारूद है, तो धधक उठो
  30. एक सेकुलर राष्ट्र के लिए...
  31. विषाद सिंध : इंसान की विजय की माँग
  32. इंशाअल्लाह, माशाअल्लाह, सुभानअल्लाह
  33. फतवाबाज़ प्रोफेसरों ने छात्रावास शाम को बंद कर दिया
  34. फतवाबाज़ों की खुराफ़ात
  35. कंजेनिटल एनोमॅली
  36. समालोचना के आमने-सामने
  37. लज्जा और अन्यान्य
  38. अवज्ञा
  39. थोड़ा-बहुत
  40. मेरी दुखियारी वर्णमाला
  41. मनी, मिसाइल, मीडिया
  42. मैं क्या स्वेच्छा से निर्वासन में हूँ?
  43. संत्रास किसे कहते हैं? कितने प्रकार के हैं और कौन-कौन से?
  44. कश्मीर अगर क्यूबा है, तो क्रुश्चेव कौन है?
  45. सिमी मर गई, तो क्या हुआ?
  46. 3812 खून, 559 बलात्कार, 227 एसिड अटैक
  47. मिचलाहट
  48. मैंने जान-बूझकर किया है विषपान
  49. यह मैं कौन-सी दुनिया में रहती हूँ?
  50. मानवता- जलकर खाक हो गई, उड़ते हैं धर्म के निशान
  51. पश्चिम का प्रेम
  52. पूर्व का प्रेम
  53. पहले जानना-सुनना होगा, तब विवाह !
  54. और कितने कालों तक चलेगी, यह नृशंसता?
  55. जिसका खो गया सारा घर-द्वार

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